त्वामु॒ग्रमव॑से चर्षणी॒सहं॒ राज॑न्दे॒वेषु॑ हूमहे। विश्वा॒ सु नो॑ विथु॒रा पि॑ब्द॒ना व॑सो॒ऽमित्रा॑न्त्सु॒षहा॑न्कृधि ॥६॥
tvām ugram avase carṣaṇīsahaṁ rājan deveṣu hūmahe | viśvā su no vithurā pibdanā vaso mitrān suṣahān kṛdhi ||
त्वाम्। उ॒ग्रम्। अव॑से। च॒र्ष॒णि॒ऽसह॑म्। राज॑न्। दे॒वेषु॑। हू॒म॒हे॒। विश्वा॑। सु। नः॒। वि॒थु॒रा। पि॒ब्द॒ना। व॒सो॒ इति॑। अ॒मित्रा॑न्। सु॒ऽसहा॑न्। कृ॒धि॒ ॥६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर वह राजा कैसा होवे, इस विषय को कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः स राजा कीदृशो भवेदित्याह ॥
हे वसो राजन् ! वयं विश्वा देवेष्ववस उग्रं चर्षणीसहं त्वां सु हूमहे त्वं नोऽमित्रान्त्सुसहान् कृधि पिब्दना विथुरा कृधि ॥६॥